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वास्तविक खुशी की खोज में गुजरात टॉपर वर्शील शाह बने जैन संत

नई दिल्ली : इस साल 12वीं की परीक्षा में 99.99 पर्सेटाइल हासिल करने वाले गुजरात के 17 वर्षीय वर्शील शाह जैन संत बन गए हैं। अब वह सादा जीवन बिताएंगे और जैन मुनि सुवीर्य रत्न विजयजी महाराज के नाम से जाने जाएंगे।


वर्शील की दीक्षा तापी नदी के किनारे सुबह चार बजे शुरू हुई। इससे पहले ब्रम्हमुहूर्त में ढोल नगाड़ों के साथ उनकी शाही सवारी निकाली गई। शाही सवारी दीक्षा मंच तक पहुंची। दीक्षा मंच पर कई जैन संतों की उपस्थिति में वर्शिल की दीक्षा की प्रक्रिया पूरी की गई। वर्शील की मां अमीबेन और पिता जिगरभाई शाह बेटे के फैसले से खुश हैं। जिगर शाह अहमदाबाद में आयकर विभाग में पदस्थ हैं। मां गृहिणी हैं।




वे ऐसे परिवार में पले-बढ़े हैं, जहां टीवी या रेफ्रिजरेटर नहीं है। बहुत जरूरी होने पर ही बिजली का उपयोग होता है, क्योंकि शाह परिवार का मानना है कि बिजली उत्पादन के दौरान कई जलीय जीव-जंतु मारे जाते हैं।

दीक्षा लेने से पहले वर्शील ने कहा था कि उनका लक्ष्य भौतिकवादी दुनिया की चीजों के पीछे भागना नहीं, अविनाशी शांति को पाना है। यह तभी संभव होगा जब वह अपने पीछे हर चीज को छोड़ जैन संत बनें। वह बचपन से ही वास्तविक खुशी के बारे में सोचा करते थे। इसी क्रम में उनकी गुरु कल्याण रतन विजयजी महाराज से भेंट हुई। उन्होंने अर्थपूर्ण खुशहाल जिंदगी का मतलब समझाया और जैन धर्म की खूबियों के बारे में बताया। लालच तो बढ़ती ही जाती है। जिसके पास हजार है, वह लाखों कमाना चाहता है और लाखों वाला करोड़ों। लेकिन, जिन जैन संन्यासियों के पास अंदर की शांति और ज्ञान के सिवा कुछ नहीं है, वे ज्यादा प्रसन्न हैं।